सूत्र :तद्भावे तदयोगादुभयव्यभिचारादपि न II1/40
सूत्र संख्या :40
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कारण की विद्यमानता से और कार्य के साथ उसका सम्बन्ध न मानने से दोनों दशाओं में व्यभिचार दोष होने से कारण-कार्य का सम्बन्ध नही रहता। जब कार्य बनता था तब तो कारण नही था और कारण हुआ तब कार्य बनाने का विचार नही, अतएव क्षणिकवादियों के मत में कार्य-कारण का सम्बन्ध किसी प्रकार हो नही सकता।
प्रश्न- जिस प्रकार घट का निमित्त कारण कुलाल पहिले से ही माना जाता है. यदि इसी भांति उपादान कारण भी माना जावे तो क्या षंका है?