सूत्र :न देहमात्रतः कर्माधिकारित्वं वैशिष्ट्यश्रुतेः II5/123
सूत्र संख्या :123
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : देहधारी मात्र को शुभा शुभ कर्मों का अधिकार नहीं दिया गया है किन्तु श्रुतियों ने मनुष्य जाति को ही धर्माधर्म का अधिकार प्रतिपादन किया है। देह के भेद से ही कर्म-भेद हैं, इस बात को आगे के सूत्र से युद्ध करते हैं।