सूत्र :न किं चिदप्यनुशयिनः II5/125
सूत्र संख्या :125
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो मुक्त हो गया है उसके वास्ते कोई भी विधान नहीं हैं, औ न उसको किसी विशेष नाम से कह सकते हैं।
प्रश्न- जीव को इस शास्त्र में नित्य माना है तो उस जीव के आश्रय में रहने वाली बुद्धि को भी नित्य मानना चाहिये?