सूत्र :योगसिद्धयोऽप्यौषधादिसिद्धिवन्नापलपनीयाः II5/128
सूत्र संख्या :128
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे औषधियों की सिद्धि होती है अर्थात् एक-एक औषध से अनेक रोगों की शान्ति होती है, इसी तरह योग की सिद्धियों को भी जानना चाहिए। कपिलाचार्य को चैतन्य मानते हैं अतएव जो पृथ्वी आदि भूतों को चैतन्य मानते हैं उनके मत को दोषयुक्त ठहरा कर अध्याय को समाप्त करते हैं।