सूत्र :आश्रयासिद्धेश्च II5/127
सूत्र संख्या :127
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जीव बुद्धि का आश्रय हो ही नहीं सकता। इनका सम्बन्ध इस तरह जैसे स्फटिक और फूल का है, इस वास्ते प्रतिबिम्ब कहना चाहिए आश्रय नहीं। इस विषय पर यह संदेह होता है कि आचार्य योग की सिद्धियों को सच्ची मानते हैं और उनके द्वारा मुक्ति को भी मानते हैं, परन्तु योग की ऐसी भी सैकड़ों सिद्धियां हैं जो समझ में नहीं आतीं। इस विषय पर आचार्य आप ही कहते हैं।