सूत्र :न भूतचैतन्यं प्रत्येका-दृष्टेः सांहत्येऽपि च सांहत्येऽपि च II5/129
सूत्र संख्या :129
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मिलने पर भी भूतों में चैतन्य नहीं हो सकता। यदि उनमें चेतनता होती तो उनके अलग-अलग होने पर भी दीखती, किन्तु पृथक् होने पर उनको जड़ देखते हैं तो चेतना कैसे मानें? ‘‘सांहत्येऽपि च’’ ऐसा दो बार कहना अध्याय की समाप्ति का सूचक है।
इति सांख्यदर्शंने पंचमोऽध्यायः समाप्तः।