सूत्र :द्वयोः सबीजमन्यत्र तद्धतिः II5/117
सूत्र संख्या :117
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : समाधि और सुषुप्ति में जो आनन्द प्रात होता है वह थोड़े ही समय के लिए होता है और उसमें बन्ध भी बना रहता है। मोक्ष का आनन्दों और मोक्ष के आनन्द में है।
प्रश्न- समाधि और सुषुप्ति यह दोंनों प्रत्यक्ष दीखती हैं, परन्तु मोक्ष प्रत्यक्ष नहीं दीखता, इसलिए इसमें आनन्द न कहना चाहिए।