सूत्र :न बाह्यबुद्धिनियमो वृक्षगु-ल्मलतौषधिवनस्पतितृणवीरुधादीनामपि भोक्तृभोगायतनत्वं पूर्ववत् II5/121
सूत्र संख्या :121
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कुछ पुस्तके में दो सूत्र माने गए हैं।
अर्थ- जिसमें बाह्य बुद्धि होती है उसको शरीर कहते हैं, यह नियम भी नहीं हैं, क्योंकि मृतक शरीर में बाह्य बुद्धि नहीं होती है तो क्या उसको शरीर नही कह सकते हैं। और वृक्ष, गुल्म, औषधि, वनस्पति, तृणः वीरूध आदिकों में बहुत से जीव भाग के नितित्त रहते हैं और उनका बाहर के पदार्थों से कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहता, यदि बाहर के पदार्थों के ज्ञान से ही शरीर माना जावे तो उनको शरी को शरीर न मानना चाहिए।