सूत्र :न द्रव्यनियमस्तद्योगात् II5/108
सूत्र संख्या :108
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वृत्ति द्रव्य ही है यह नियम नहीं, क्योंकि अनेक वाक्यों में ऐसे विषय पर भी वृत्ति का व्यवहार देखने में आता है जहां पर द्रव्य का अर्थ नहीं हो सकता, जैसे-वैश्य वृत्ति शूद्र वृत्ति इत्यादि। अतः हमने जिस विषय पर वृत्ति को द्रव्य माना है उसी विषय पर द्रव्य है और जगह जैसा अर्थ हो वैसा ही करना चाहिये। इस बात को भी पहिले कह छुके हैं कि पांचभौतिक शरीर सिर्फ नाममात्र ही है वास्तव में तो पार्थिव है। अब इस बात का विचार किया जाता है कि जिन इन्द्रियों के आश्रय से शरीर है वे इन्द्रियां जैसे कि हम लोगों की अहंकार पैदा हैं वैसे ही और देशों के मनुष्य की भी अहंकार से ही पैदा होती हैं पंचभूत से नही पैदा होती।