सूत्र :न स्थूलमिति नियम आतिवाहिकस्यापि विद्यमानत्वात् II5/103
सूत्र संख्या :103
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : स्थूल शरीर ही है ऐसा कोई भी नहीं है, क्योंकि आतिवाहिक अर्थात् ल्रिग शरीर भी मौजूद है। यदि लिंग शरीर को न माना जाय तो स्थूल शरीर में गमनादि त्रिया ही नहीं हो सकती। इस बात को तीसरे अध्याय में विस्तार विस्तारपूर्वक कह आये है जैसे-तेल बत्ती रूप से उत्पन्न हुईदीप की शिक्षा सम्पूर्ण घर का प्रकाश कर देती है, इसी तरह लिंग शरीर भी स्थूल शरीर को अनेक व्यापारों में लगाता है और इस बात को भी पहले कह आये हैं कि इन्द्रियां गोलकों से अतिरिक्त हैं, इसके साबित करने को ही इन्द्रियों की शक्ति कहते हैं।