सूत्र :न पाञ्चभौतिकं शरीरं बहूनामुपादानायोगात् II5/102
सूत्र संख्या :102
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शरीर पांच भौतिक नहीं है अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज वायु, आकाश से शरीर की उत्पत्ति नहीं हैं, क्योंकि बहुत से पदार्थ के उपादान कारण (जो जिससे बने, जैसे मिट्टी से घड़ा बनता है) नहीं हो सकते, इस कारण शरीर को सिर्फ पार्थिव (पृथ्वी से बना हुआ) ही माना चाहिये और जो अग्नि आदि चार भूत इसमें कहे जाते हैं वे सिर्फ नाममात्र को ही हैं। कोई-कोई स्थूल शरीर को भी मानते हैं उनका भी खण्डन करते हैं।