सूत्र :न तेजोऽपसर्पणात्तैजसं चक्षुर्वृत्तितस्तत्सिद्धेः II5/105
सूत्र संख्या :105
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : निस्सन्देह तेज में फैलने की शक्ति है, परन्तु इससे चक्षु को तेज स्वरूप नहीं कह सकते, क्योंकि जिस बात के सिद्ध करने के लिए नेत्र को तेजस्वरूप मानने की जरूरत है वह बात इस रीति से सिद्ध हो सकती है कि जो नेत्र की वृत्ति है (जिससे कि पदार्थ का प्रत्यक्ष होता है) उसी से पदार्थ का प्रत्यक्ष माना जाये।