सूत्र :न देहारम्भकस्य प्राणत्वमिन्द्रियशक्तितस्तत्सिद्धेः II5/113
सूत्र संख्या :113
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शरीर का कत्र्ता प्राण नहीं हो सकता, क्योकि प्राण इन्द्रियों की शक्ति से अपने कार्यं को करता हैं और इन्द्रियों के साथ प्राण का अन्वय-व्यतिरेक दृष्टान्त भी हो सकता है कि जब तक इन्द्रियां हैं तब तक प्राण हैं, जब इन्द्रियां नाश हो गई तब प्राण भी नाश हो गया, इसलिए प्राण को देह का कारण नहीं कह सकते।
प्रश्न- जबकि शरीर के बनने में प्राण नहीं है तो बिना प्राण के भी शरीर की उत्पत्ति होनी चाहिये?