सूत्र :भागगुणाभ्यां तत्त्वान्तरं वृत्तिः सम्बन्धार्थं सर्पतीति II5/107
सूत्र संख्या :107
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : नेत्र आदि की वृत्ति पदार्थ के सम्बन्ध वास्ते जाती है, इससे नेत्र का भाग या रूप आदि गुण वृत्ति नहीं है किन्तु भाग और गुण इन दोनों से भिन्न एक तीसरे पदार्थ का नाम वृत्ति है, क्योंकि यदि चक्षु आदि के भाग का नाम वृत्ति है, क्योंकि यदि चक्षु आदि के भाग का नाम वृत्ति होता तो एक-एक पदार्थ का एक-एक- बार नेत्र से सम्बन्ध होने पर सहस्त्र-सहस्त्र नेत्र के टुकड़े होकर उसका नाश हो जाना योग्य जड़ होते हैं, इस वास्ते वृत्ति का पदार्थ के साथ सम्बन्ध होते ही पदार्थ में चला जाना नहीं हो सकता था। अतः भाग और गुण इन दोनों से वृत्ति भिन्न एक पदार्थ है।
प्रश्न- ऐसे लक्षणों के करने से एक वृत्ति द्रव्य सिव् होता है तब इच्छा आदि जो बुद्धि के गुण हैं उनको वृत्ति क्यों माना है? क्योंकि गुणों का नाम वृत्ति नही हो सकता।