सूत्र :ऊष्मजाण्डजजरायुजोद्भिज्जसांकल्पिकसांसिद्धिकं चेति न नियमः II5/111
सूत्र संख्या :111
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : (१) ऊष्मज (जो पसीने से पैदा होते हैं, जैसे लीख आदि), अण्डज (जो अण्डे से पैदा होते हैं, जैसे मुर्गी आदि), (३) जरायुग (जो झिल्लों से पैदा होते हैं, मनुष्य आदि), (४) उद्भिज्ज (जो जमीन को फोड़कर पैदा होते हैं, पेड़ आदि), (५) सांकल्पिक (जैसे सृष्टि के आदि में बिना माता-पिता के देवऋषि पैदा होते हैं), (६) सांसिद्धिक (जैसे खान में धातु बनते हैं)। आचार्य (कपिलजी) ने यही छः प्रकार की सृष्टि मानी है, लेकिन इन छः प्रकार के सिवाय और किसी तरह की सृष्टि नहीं हैं, ऐसा नियम भी नहीं, क्योंकि शायद किसी दशा में भूतों की सृष्टि इनसे अन्य प्रकार की हो। आचार्य के निश्चय से तो छः ही प्रकार की सृष्टि देखने में आती है।