सूत्र :निमित्तव्यपदेशात्तद्व्यपदेशः II5/110
सूत्र संख्या :110
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अन्द्रियों का निमित्त जो अहंकार है उससे पचंभूतों में भी इन्द्रियों का काणत्व स्थापन किया जाता है, जैसे-आग यद्यपि काष्ठादि रूप नहीं है तथापि उसका लकड़ी की आग इत्यादि रूपों से पुकारते हैं, इसी तरह इन्द्रियां भी भौतिक नहीं हैं, तो भी उनका भौतिक कहते हैं।
प्रश्न- सृष्टि किने प्रकार की है?
उत्तर- छः प्रकार की, देखे-