सूत्र :नानुमेयत्वमेव क्रियाया नेदिष्ठस्य तत्तद्वतोरेवापरोक्षप्रतीतेः II5/101
सूत्र संख्या :101
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : त्रिया और त्रिया वाले का संयोग होकर वह बनता है, इस बात के जानने के लिए अनमान की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि पास रहने वाले कुम्हार की प्रत्यक्ष त्रिया को देख कर ही जान लेते हैं कि दो कपालों के मिलने से घट बनता है, इसलिए जब तक वह घड़ा मौजूद रहेगा तब तक सम्बन्ध भी जरूर रहेगा, इसके लिए समवाय सम्बन्ध के मानने की कोई जरूरत नहीं है। दूसरे अध्याय में यह मतभेद कह चुके हैं कि शरीर पांच भौतिक है। अब उन मतों की सत्यासत्यता दिखाते हैं कि वे मत सच्चे हैं या झूठे।