सूत्र :दृष्टा-न्तासिद्धेश्च II1/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : क्षणिक मे जो दीपशिखा का दृष्टान्त दिया वह अयुक्त है, क्योकि क्षण ऐसा सूक्ष्म काल है कि जिसकी इयत्ता नही हो सकती और न उसकी कुछ इयत्ता है और प्रत्यक्ष में दीपशिखा कई क्षण तक एक सी बराबर रहती है, यह कथन भी सर्वथा अयुक्त है और क्षणिकवादियों के मत में एक दोष यह भी होगा कारण और कार्यभाव नही हो सकेगा और जब कार्य कारण का नियम न रहा तो किसी रोग की औषध जो निदान अर्थात् कारण के ज्ञान को जानकर उसके विरूद्ध शक्ति से की जाती है, नही हो सकेगी और संसार में जो घट का कारण मृत्तिका को माना जाता है सर्वथा न कह सकेंगे क्योकि जिस क्षण में मृत्तिका घट का कारण है वह क्षण अब नष्ट हो गया और यह कहना सर्वथा अयसुक्त है कि मृत्तिका घट का कारण नही, क्योकि बिना कारण जाने घट बनाने में कुलाल की प्रवृत्ति नही होती और यदि दोनों की अर्थात् मृत्तिका और घट की उत्पत्ति एक ही क्षण में माने तो दोष होगा-