सूत्र :न सर्वोच्छित्तिरपुरुषार्थत्वा-दिदोषात् II5/78
सूत्र संख्या :78
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सबको छोड़ देना भी मोक्ष नहीं हो सकता। यदि प्रधान सम्पूर्ण सृष्टि आदि की रचना को छोड़ दे तो भी उसकी मुक्ति नहीं हो सकती, क्योंकि प्रधान के सब कार्य पुरूष के लिये हैं।