सूत्र :एवं शून्यमपि II5/79
सूत्र संख्या :79
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि सबको छोड़ देना ही प्रधान की मुक्ति का लक्षण मान भ लिया जाय तो वह मुक्ति शून्य रहेगी, क्योंकि आनन्द न रहेगा तो व्यर्थ हैं, इसलिये ऐसा न माना जाये।
प्रश्न- पुरूष के साथ रहने वाली प्रकृति किसी स्थान में पुरूष को छोड़ दे इसको ही मुक्ति क्या न माना जाय?