सूत्र :नाकारोपरागोच्छित्तिः क्षणिकत्वादिदोषात् II5/77
सूत्र संख्या :77
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि आकार के सम्बन्ध को छोड़ देना ही मुक्ति मानें तो भी ठीक नहीं, क्योंकि उसमें क्षणिकत्वादी दोष प्राप्त होते हैं। इस सूत्र का स्पष्टार्थं यह है-प्रकृति की आकार घड़ा है, उसका जो फूट जाना है उसको ही प्रकृति की मुक्ति मान लिया जाय सो यह कथन कुछ अच्छा नहीं हैं, क्योंकि क्षणिकत्वादि सैकड़ों दोष प्राप्त हो जायेंगे ऐसा मानने से जैये कि कोई घड़ा इस क्षण में टूट गया और फिर इसी क्षण में दूसरा बन गया, इत्यादि कारणों से प्रधान की मुक्ति कैसे हो सकती है?