सूत्र :नानन्दाभिव्यक्तिर्मुक्तिर्निर्धर्मत्वात् II5/74
सूत्र संख्या :74
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रधान जो प्रकृति है उसको आनन्द की अभिव्यक्ति (ज्ञान) नहीं हो सकती, इस कारण उसकी मुक्ति भी नहीं कह सकते, क्योंकि आनन्द प्रधान का धर्म नहीं है किन्तु जीव का है।