सूत्र :संयोगाश्च वियोगान्ता इति न देशादिला-भोऽपि II5/80
सूत्र संख्या :80
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिसका संयोग होता है उसका वियोग तो निश्चय ही होगा फिर किसी स्थान में जाकर छोड़ा तो क्या मुक्ति हो सकती है? किसी सूरत में नहीं। इसी तरह जब प्रकृति और पुरूष का संयोग है तो वियोग भी जरूर होगा, फिर उसमें देश की क्या जरूरत हैं, क्योंकि स्थान के प्राप्त होने से मुक्ति तो ही नहीं सकती।