सूत्र :नेन्द्रादिपदयोगोऽपि तद्वत् II5/83
सूत्र संख्या :83
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पुरूष के संयोग से इन्द्रादि पद की प्राप्ति का होना प्रधान की मुक्ति का लक्षण हो सकता, क्योंकि वह सब नाशवान है। अब ‘‘अहंकरित्वश्रुतेर्नं भैतिकानि’’ इस सूत्र में जो बात सूक्ष्म रूप से कही है उसको कहते हैं।