सूत्र :न भूतप्रकृतित्वमिन्द्रियाणामाहङ्कारिकत्वश्रुतेः II5/84
सूत्र संख्या :84
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो बात पृथ्वी आदि भूतों में विद्यमान है वह बात इंद्रियों से नहीं दीखती, इस वास्ते इन्द्रियों को भौतिक नहीं कह सकते, क्योंकि अहंकार से पैदा हुई हैं।
प्रश्न- सांख्य के मत के अनुसार प्रकृति और पुरूष का ज्ञान होना ही मुक्ति का हेतु है, किन्तु वैशेषिकादिकों ने जो छः पदार्थ माने हैं उनके ज्ञान् से मुक्ति क्यों नहीं हो सकती?