सूत्र :नाणिमादियोगोऽप्यवश्यम्भा-वित्वात्तदुच्छित्तेरितरयोगवत् II5/82
सूत्र संख्या :82
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पुरूष योग से अणिमादि ऐश्वय्र्यों का योग होना भी प्रधान की मुक्ति का लक्षण नहीं हो सकता, क्योंकि जिसका योग है उसका वियोग तो अवश्य ही होगा, जैसा कि दूसरे पदार्थों में मालूम होता है।