सूत्र :सत्कार्यसिद्धान्तश्चे-त्सिद्धसाधनम् II5/60
सूत्र संख्या :60
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि ऐसा कहा जाए कि कार्य जिस अवस्था में दीखता है, उसी अवस्था में सत् हैष् शेष और अवस्थाओं में असत् है। इसी तरह शब्द का भी कार्य है और अपनी अवस्था में सत् है, ऐसा मानेंगे, तो आचार्य कहते हैं कि ऐसा माने पर हम शब्द के सम्बन्ध में सिद्ध साधन मानेंगे अर्थात् जो शब्द पहिले हृदय में था, उसी का उच्चारण आदि त्रियाओं से स्पष्ट किया है न्तिु घटादि पदार्थों के समान बनाया नहीं है। यहां तक शब्दविचार समाप्त हुआ। अब इा विषय का विचार करें कि जीव एक है वा अनेक हैं।