सूत्र :नोभाभ्यां तेनैव II5/63
सूत्र संख्या :63
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आत्मा और अनात्मा इन दोनों की एकता है ऐसा कहना भी योग्य नहीं, क्योंकि उसी प्रत्यक्ष प्रमाण में बाधा प्राप्त हो जाएगी और संसार में यह बात प्रत्यक्ष दीख रही है कि आत्मा और अनात्मा दो पदार्थ भिन्न-भिन्न हैं, इस वास्ते ऐसा कहना कि एक आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं, योग्य नहीं।
प्रश्न- अगर तुम ऐसा मानते हो कि आत्मा और अनात्मा भिन्न-भिन्न पदार्थ हैं, तो श्रुतियां ऐसा क्यों कहती हैं कि ‘‘एकमेवाद्वितीयं ब्रह्य’’, ’’आत्मैवेदं सर्बम्’’ (एक ही ब्रह्य अद्वितीय है, यह सब आत्मा ही है) इत्यादि श्रुतियां एक आत्मा बताती हैं, तो बहुत से आत्मा, जीव वा ब्रह्य पृकक्-पृथक् क्यों मानें जाएं।