सूत्र :नात्माविद्या नोभयं जगदुपादानकारणं निःसङ्गत्वात् II5/65
सूत्र संख्या :65
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इस कारण आत्मा जगत् का उपादान कारण नहीं हो सकता कि वह निर्विकार है। यदि अविद्या को उपादान कारण मानें तो अविद्या भी संसार का उपादान कारण नहीं हो सकती, क्योंकि सत् मानें तो द्वैतापत्ति प्राप्त होती है और असत् मानने पर बन्ध्या के पुत्र के सदृश अभाव वाली हो जाएगी, और आत्मा तथा अविद्या यह दों मिल कर संसार का उपादान कारण इस प्रकार नहीं हो सकते कि आत्मा संग रहित है, इस कारण ही जो एक आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं मानते, उनके मत में संसार का उपादान कारण सिद्ध नहीं हो सकता है।