सूत्र :नैकस्या-नन्दचिद्रूपत्वे द्वयोर्भेदात् II5/66
सूत्र संख्या :66
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वेदादि सत् शास्त्र ईश्वर को सच्चिदानन्द कह कर पुकार रहे हैं, और जीव में आनन्द रूप होता नहीं है, इस कारण ईश्वर और जी इन दोनों में भेद है।
प्रश्न- जीव में आनन्द तो माना ही नहीं गया है, तो मुक्ति का उपदेश क्यों कहा, क्योंकि मुक्ति अवस्था में दुःखो के दूर हो जाने पर आनन्द होता है।