सूत्र :नान्यथाख्यातिः स्ववचोव्याघातात् II5/55
सूत्र संख्या :55
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अन्यथा ख्याति भी नहीं कह सकते, क्योंकि ऐसा कहने पर अपने ही कथन में दोष प्राप्त होता है। इस सूत्र का अभियाय यह है कि वेद का अर्थ दूसरा है, परन्तु संसार में दूसरी प्रचलित हो रहा है। इस तरह की अन्यथा ख्याति करने पर यह दोष होता है कि जो मनुष्य वेद का अर्थ ही न मानकर अनिर्वचनीय कहते है वह अन्यथा ख्याति को क्यों नहीं मान सकते हैं, ऐसा कहना उनके वचन से ही विरूद्ध होगा।
प्रश्न- अन्यथा ख्याति किसको कहते हैं।
उत्तर- पदार्थ तो दूसरा हो, और अर्थ दूसरी तरह किया जाय,जैसे-सीप में चांदी का आरोप करना अर्थात् चांदी सिद्ध करना।