DARSHAN
दर्शन शास्त्र : सांख्य दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :नानात्मनापि प्रत्यक्षबाधात् II5/62
सूत्र संख्या :62

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : अनात्मा जो सुख दुःखादिकों के भोग हैं, उनसे भी यही बात सिद्ध होती है कि जीव एक नहीं हैं, क्योंकि एक मानने से प्रत्यक्ष में विरोध की प्राप्ति होती है और संसार में दीखता है कि सुख-दुख अनेक व्यक्ति एक समय में भोग करते हैं, दूसरे पक्ष में ऐसा अर्थ करना चाहिए, कि मनुष्य एक आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं मानते, उनके सिद्धांत में पूर्वोक्त दोष के अतिरिक्त और एक दोष यह भी प्राप्त हो जाएगा कि घटादि कार्यों को भी आत्मा मानकर उनके नाश होते ही आत्मा का भी नाश होगा। यह प्रत्यक्ष से विरोध होगा, इसलिए ऐसा अद्वैत मानना सत्य नहीं है।