सूत्र :अन्यपरत्वमविवेकानां तत्र II5/64
सूत्र संख्या :64
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन श्रुतियों में अन्यपरत्व अर्थात् द्वैत है, ऐसा ज्ञान अज्ञों को होता है और जो विद्वान हैं वह इन श्रुतियों का ऐसा अर्थ नही करते हैं क्योंकि अद्वितीय शब्द से यह प्रयोजन है कि ईश्वर के समान दूसरा और कोई नहीं है और जो एक आत्मा मानते हैं, उनके मत से संसार का उपादान कारण सत्य नहीं हो सकता।