DARSHAN
दर्शन शास्त्र : सांख्य दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :प्रतीत्यप्रतीतिभ्यां न स्फोटात्मकः शब्दः II5/57
सूत्र संख्या :57

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जो शब्द मुख से निकलता है, उस शब्द के अतिरिक्त जो उस शब्द में अर्थ के ज्ञान कराने वाली शक्ति है उसे स्फोट कहते हैं, जैसे कि-किसी ने कलश् शब्द को कहा, तो उस कलश शब्द के उच्चारण होने से कम्बग्रीवादी कपालों का जिस शक्ति से ज्ञान होता है, उसका ही नाम स्फोट है। इससे ऐसा न समझना चाहिए कि कलश इतना शब्द मुंह से निलते ही जिस शक्ति से उनका ज्ञान होता है, उसी का ही नाम कलश है, किन्तु जिस शक्ति से उनका ज्ञान होता है, उसी का नाम स्फोट कहलाता है, किन्तु स्फोटात्मक शब्द नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें दो तरह के तर्क उत्पन्न हो सकते हैं कि शब्द की प्रतीति होती है या नहीं। यदि प्रतीति होती है, तो जिस अर्थ वाले अक्षर समुदाय से पूर्वापर मिलाकर अर्थ प्रतीत और वाच्य वस्तु का बोध है, उसके सिवाय स्फोट को मानना व्यर्थ है, क्योंकि शब्द से ही ज्ञान हुआ स्फोट से नहीं। और यह कहो कि शब्द की प्रतीति नहीं होती तब अर्थ ही नहीं। फिर स्फोट में ऐसी शक्ति कहां से आई जो बिना अर्थ की प्रतीति करा सके। इस कारण स्फोट का मानना व्यर्थ है।

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