DARSHAN
दर्शन शास्त्र : सांख्य दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :निजशक्त्यभिव्यक्तेः स्वतः प्रामाण्यम् II5/51
सूत्र संख्या :51

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जिस वेद के ज्ञान होने से अर्थात् जानने से आयुर्वेंद कला-कौश्ल आदि सब तरह की विद्याओं का प्रकाश होता है वह वेद स्वतः प्रमाण हैं। उसमें प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं हैं, क्योंकि जो आप ही दूसरों का प्रमाण है उसका प्रमाण किसको कह सकते हैं, जैसे-सेर, दुसेरी आदि तोलने के बाट तोलने में आप हीं कह सकते हैं लेकिन सेर दुसेरी आदि बाट क्यों प्रमाण है, ऐसा प्रश्न नहीं हो सकता, क्योंकि वह तो स्वतः प्रमाण हैं। इसी तरह वेदों को भी स्वतः प्रमाण समझना चाहिये। पहिले जो ४१वें सूत्र में नास्तिक ने यह पूर्व पक्ष किया था कि वेदों का अर्थ नहीं हो सकता, उसका उत्तर-पक्ष वहां कह आये थे, और फिर भी उसको ही दृष्टान्त प्रत्यक्ष करते हैं।

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