सूत्र :नासतः ख्यानं नृशृङ्गवत् II5/52
सूत्र संख्या :52
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे कि पुरूष के सींग नहीं होते, इसी तरह जो पदार्थ है ही नहीं, उसका कहना भी व्यर्थ है, जैसे कि बन्ध्या स्त्री का पुत्र। जबकि बन्ध्या स्त्री के पुत्र होता ही नहीं तो ऐसा कहना भी व्यर्थ है। यदि इस तरह वेदों का भी कुछ अर्थ न होता तो वृद्ध लोग परम्परा से (एक को एक ने पढ़ाया) क्यों शिष्यों को पढ़ाकर प्रसिद्ध करते। इससे प्रत्यक्ष होता है कि वेदों का अर्थ है।