सूत्र :तेषामपि तद्योगे दृष्टबाधादिप्रसक्तिः II5/49
सूत्र संख्या :49
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि वेदों को भी बनाया हुआ माना जायगा, तो प्रत्यक्ष जो दीखता है, उसमें दोष प्राप्त होगा। दृष्टान्त-जैसे अंकुर का लगाने वाला दीखता है और उपादान कारण जो बीज है वह भी दीखता है। इस प्रकार वेदों का बनाने वाला और उत्पादन कारण नहीं दीखता है, इस कारण नित्य है। यदि नित्य न माना जाये, तो प्रत्यक्ष से विरोध हो जायगा। वेदों को जो अपौरूषेय कहा है, उसमें सन्देह होता है कि पौरूषेय किसको कहतें हैं और अपौरूषेय किसको कहते हैं? इस सन्देह को दूर करने के लिए पौरूष का लक्षण लिखते हैं।