सूत्र :यस्मिन्नदृष्टेऽपि कृतबुद्धिरुपजायते तत्पौरुषेयम् II5/50
सूत्र संख्या :50
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस पदार्थ का कत्र्ता प्रत्यक्ष न हो अर्थात् बनाने वाला न दीखता हो, लेकिन-पदार्थ के देखने से यह ज्ञान हो। लेकिन वेदों देखने से यह बुद्धि उत्पन्न नहीं होती, क्योंकि वेदों की उत्पत्ति ईश्वर में मानी गई है और उन वेदों को बनाने वाला कोई नहीं हैं। उत्पत्ति और बनाना, दोनों में इतना अन्ता है कि बीज से अंकुर उत्पन्न हुआ, कुम्हार ने घड़े को बनाया इस बात को बुद्धिमान अपने आप विचार लेवें, कि उत्पत्ति और बनाना इसमें भेद है या नहीं? बनाना कोई और बात हैं, उत्पत्ति कोई और बात है। इस तरह ही वेदों की उत्पत्ति मानी गई है, किन्तु घटादि पदार्थों के समान वेदों की उत्पत्ति नहीं हैं। इस कारण वेद अपौरूषेय हैं।
प्रश्न- जबकि वेदों में उन्हीं बातों का वर्णन है, जो संसार में वर्तमान हैं, तो वेदों को प्रमाण माना जाय?