सूत्र :मुक्तामुक्तयोरयोग्यत्वात् II5/47
सूत्र संख्या :47
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जीव भी दो प्रकार के होते हैं- एक तो मुक्त, दूसरे अमुक्त। यह दोनों प्रकार के जीव वेद के बनाने के अधिकारी नहीं हैं। कारण यह है कि मुक्तजीव में वेद शक्ति नहीं रहती, जिसमें वेद बना सके, और वद्ध जीव अज्ञानी, अल्पज्ञ आदि दोषों से युक्त होता है और वेद में इस प्रकार की बातें देखने में आती हैं, जो बिना सर्वज्ञ के नहीं हो सकती और जीव अल्पज्ञ हैं, प्रमाण से भी वेदों की नित्यता सिद्ध हो गई। इसी विषय को और भी दृढ़ करते हैं।