सूत्र :न नित्यत्वं वेदानां कार्यत्वश्रुतेः II5/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वेद नित्य नहीं हैं, क्योंकि श्रुतियों से मालूम होता है कि ‘‘तस्पाद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे’’ उस यज्ञरूप परमात्मा से ऋग्वेद, सामवेद उत्पन्न हुए इत्यादि श्रुतियां पुकार-पुकार कह रही हैं कि वेद उत्पन्न हुए। जब ऐसा सिद्ध हो गया, तो यह बात निश्चय ही है कि जिसकी उत्पत्ति है, उनका नाश भी अवश्य है, इस वास्ते वेद कार्यरूप होने से नित्य नहीं हो सकते हैं।