सूत्र :योग्यायोग्येषु प्रतीतिजनकत्वात्तत्सिद्धिः II5/44
सूत्र संख्या :44
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ब्रह्यर्चादि जिन-जिन कार्यों को वेद ने अच्छा कहा है और हिंसादि जिन-जिन कार्यों को बुरा कहा हैं, उनकी प्रतीति प्रत्यक्ष में दीखती है अर्थात् इन दोनों कार्यों का जैसा फल वेद में लिखा है वैसा ही दीखने में आता है। इससे बात की सिद्धि हो गई कि वेद का अर्थ अतीतिन्द्रय नहीं है।