सूत्र :न कार्ये नियम उभयथा दर्शनात् II5/39
सूत्र संख्या :39
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह कोई नियम नहीं है कि शब्द -शक्ति का वाच्य-वाचकभाव कार्य में ही हो, और जगह नहीं, क्योंकि दोनों तरह शब्द की शक्तियों का ग्रहण दीखता है। शास्त्रों में जैसे वृद्ध ने बालक से कहा ‘‘गौ को लाओं’’ इस वाक्य के कहने से गौ का लाना यह कार्य दीखता है और शब्द भी उस कार्य को ही दिखलाते हैं और तेरे पुत्र का उत्पन्न होना यह जो त्रिया है वह पहले ही हो चुकी और वाक्य उस बीती हुई त्रिया को कहता हैं, इस वास्ते यह नियम नहीं कि कार्य में ही शब्द और सम्बन्ध हौ।
प्रश्न- यह उपरोक्त प्रतीति लोकिक गातों में हो सकती है, क्योंकि संसार में बहुधा कार्यं शब्दों का प्रयोग किया जाता है, किन्तु वेद में जो शब्द है, उनके अर्थ का ज्ञान कैसे होता है? क्योंकि शब्द कार्य नहीं है।