सूत्र :लोके व्युत्पन्नस्य वेदार्थप्रतीतिः II5/40
सूत्र संख्या :40
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो मनुष्य सांसारिक कार्यों में चतुर होते हैं, वही वेद को यथार्थ रीति से जान सकते हैं, क्योंकि ऐसा कोई भी लोक का हिलकारी कार्य नहीं है, जो वेद में न हो, इस वास्ते वेद में विज्ञता उत्पन्न करने के अर्थ साँसारिक जीवों को योग्यता प्राप्त करनी चाहिए और शब्दों की शक्ति लोक और वेद इन दोनों में बराबर है। इस विषय पर नास्तिक शंका करते हैं।