सूत्र :पल्लवादिष्वनुपपत्तेश्च II5/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे कि पत्तों का आधार पेड़ है, और व्याप्ति का लक्षण स्वरूपशक्ति मानकर वृक्ष की शक्तिस्वरूप जो पत्ते हैं, वही व्याप्तिः के कहने से ग्रहण हो सकते हैं। इस प्रकार मानने में यह दोष रहेगा कि जैसे वृक्ष की स्वरूपशक्ति पत्तों को मान लिया और वही व्याप्ति भी हो गई तो पत्तों के टूटने पर व्याप्ति का भी नाश मानना पड़ेगा। यदि व्याप्ति का नाश माना जायेगा, तरे बड़ा भारी झगड़ा उत्पन्न हो जायेगा, और प्रत्यक्ष्वादी चार्वाक नासिक का मत पुष्ट हो जायेगा इस वास्ते ऐसा न मानना चाहिए कि आधार की स्वरूपशक्ति का ही नाम व्याप्ति है। अब इस बात का निश्चय करते हैं कि आचार्य और पंचशिख नामक आचार्य के मत में भेद है या नहीं। क्योंकि पंचशिख नामवाला आचार्य तो आधार (आग) में आधंय (धुवें) की शक्ति होने को व्याप्ति मानना है। और आचार्य मुनि कपिल जी व्यात्त आग की शक्ति से उत्पन्न हुई किसी विशेष शक्ति को दूसरा पदार्थ मानकर दसको व्याप्ति मानते हैं। इन दोनों में से कौन सत्य है?