सूत्र :विशेषणा-नर्थक्यप्रसक्तेः II5/34
सूत्र संख्या :34
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : विशषेण देना व्यर्थ हो जोयेगा, जैसे कहा गया है कि बहुत धुएं वाली आग है। इस वाक्य में शब्द विशेषण है और धुआँ विशेषण है, इसी तरह धुआं आधेय है और आग आधार है। यदि धुएं को अग्नि की स्वरूप शक्ति मान लें तो बहुत शब्द को क्या मानें, क्योंकि उस ‘बहुत’ शब्द को अग्नि की स्वरूप शक्ति नहीं मान सकते और वाक्य के साथ होने से वह वह शब्द अपना कुछ अर्थ भी अवश्य हो रखता है एवं उस अर्थ से स्वरूपशक्ति में न्यूनाधिकता भी अवश्य हो जाती है, तो उसको भी कुछ अवश्य मानना चाहिये। यदि न माना जायेगा, तो उसका उच्चारण करना व्यर्थ हुआ जाता है और महात्माओं के अक्षर व्यर्थ नहीं होते और भी दूसरा झगड़ा प्राप्त होता हैं किः-