सूत्र :न स्वरूपशक्तिर्नियमः पुनर्वादप्रसक्तेः II5/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : व्याप्य की स्वरूप्शक्ति को नियम अर्थात् व्याप्ति नहीं मान सकते, क्योकि उसमें फिर झगड़ा पड़ने का भय है। अब उस झगड़े को लिखते हैं जिसका भय हैं-