सूत्र :न सकृद्ग्रहणात्सम्बन्धसिद्धिः II5/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जहां धुंआ होगा, वहां अग्नि भी होगी। इस साहचर्य के स्वीकार से व्याप्तिरूपी सम्बन्ध की सिद्धि नहीं होती, क्योंकि आग में धुंआ सदा नही रहता और जो रसोई का दृष्टांत दिया जाता हैं, वह भी सत्य नहीं है, क्योंकि किसी जगह अग्नि और घोड़ा इन दोनों का किसी आदमी ने देखा, अब दूसरी जगह उसको घोड़ा नजर पड़ा तब वह ऐसा अनुमान नहीं कर सकता कि यहां अग्नि भी होगी। क्योंकि घोड़ा दीखता है। ऐसे ही अग्नि और घोड़ा मैने वहां भी देखा था। बस इस पूर्वपक्ष से नैयायिक जैसा अनुमान करते हैं वह अयुक्त सिद्ध हुआ और प्रत्यक्ष को ही मानने वाले चाबकि नास्तिक के मन की पुष्टि हुई। इसका यह उत्तर हैः-