सूत्र :व्यक्तिभेदः कर्मविशेषात् II3/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : स्थूल शरीर अनेक प्रकार के अनेक कर्मों के करने से होते हैं। अब विचार किया जाता है, तो इससे यही बात सिद्ध होती है कि जीवों के भोग का हेतु कर्म ही है।
प्रश्न- जबकि भोगों के स्थान लिंग शरीर को ही शरीरत्व है तो स्थूल शरीर क्यों कहते हैं?