सूत्र :उपभोगादितरस्य II3/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब अविवेक के कार्य प्रारब्ध का उपभोग पूरा हो जाता है, तब ही महाप्रलय होती है। जबकि अविवेक का भोग ही विशेष रहा है तब सूक्ष्म भूत इस शरीर को क्यों उत्पन्न करेंगे? और महाप्रलयावस्था में प्रारब्ध कर्म का भोग नाश हो जाता है तब भी संचित कर्म बने रहते हैं, क्योंकि कर्म प्रवाह से अनादि हैं।