सूत्र :पुरुषार्थं संसृतिर्लिङ्गानां सूपकारवद्राज्ञः II3/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : लिंग शरीर की उत्पत्ति पुरूष के वास्ते है, जैसे-पाकाशाला में रसोइये को अपने स्वामी के वास्ते जाना है, इस ही तरह लिंग शरीर का होना भी वास्ते है। लिंग शरीर का विचार किया जाता हैः-